भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व विधायक महेंद्र भट्ट को उत्तराखंड संगठन की बागडोर सौंपकर एक तीर से कई निशाने साधने का काम किया। पार्टी ने भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर क्षेत्रीय व जातीय समीकरण में संतुलन बनाने की कोशिश की। साथ ही चमोली जिले को प्रदेश अध्यक्ष का तोहफा देकर प्रदेश मंत्रिमंडल में जिले को प्रतिनिधित्व न मिलने की कसक को भी पूरा किया।
गढ़वाल क्षेत्र से ब्राह्मण अनुभवी चेहरा होने का महेंद्र भट्ट का पूरा फायदा मिला। वह भी किस्मत के धनी माने जा रहे हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव में हारने के बाद भी केंद्रीय नेतृत्व ने उन पर विश्वास जताया और संगठन के सबसे बड़े पद से नवाजा।
सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से सांगठनिक ताना बाना बनाने में माहिर भाजपा ने पहली बार मैदानी जिले हरिद्वार से प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। 2017 के चुनाव में हरिद्वार जिले में शानदार प्रदर्शन के बाद पार्टी ने यह नया प्रयोग किया था। लेकिन सियासी समीकरण उलट पुलट हो गए।
पहले गढ़वाल क्षेत्र से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की केंद्रीय मंत्रिमंडल से विदाई हुई। फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी से त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत भी विदा हो गए। कुमाऊं से अजय भट्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली और फिर कुमाऊं मंडल से ही पुष्कर सिंह धामी की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी कर दी गई। हालांकि भाजपा जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों पर बहुत खुलकर बात नहीं करती है, लेकिन सच्चाई यही है कि उसे लंबे समय से गढ़वाल के एक ऐसे ब्राह्मण चेहरे की तलाश थी, जो संघ और संगठन दोनों में तपकर तराशा गया हो।