मानवता की सेवा के अद्वितीय मिसाल हैं डा. आर एस रौतेला
कहते है कि डाक्टर ईश्वर का दूसरा रुप हैं या इस धरती पर ईश्वर के दूत हैं। इस कहावत को चरितार्थ किया है दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के पूर्व चिकित्सा निदेशक और वर्तमान में एनेस्थीसिया डिपार्टमेंट के एचओडी डाक्टर आर एस रौतेला ने।
पूर्वी दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के डाक्टर आर एस रौतेला को लोग यूहीं देवदूत या मानवता की मिसाल नहीं कहते, जब पूरी दूनियां कोरोना के कहर से जूझ रही थी, हर दिन लाखों लोग इसके पंजे मे फंस रहे थे और हजारों लोग हर दिन अपनी जान गवां रहे थे तब डा. रौतेला ने एक मिसाल कायम की।
कोरोना संक्रमण के दौरान ही दिल्ली सरकार ने इन्हें जीटीबी अस्पताल की जिम्मेदारी दी इन्हें इस अस्पताल का चिकित्सा निदेशक नियुक्त किया, किसी व्यक्ति के लिए निश्चित रूप से ऐसी नियुक्ति सम्मानजनक होती है, परंतु जिन परिस्थितियों मे इनकी नियुक्ति हुइ थी, वह बहुत ही चुनौतीपूर्ण थी। कारण पूरी दूनियां के लिए कोरोना का संक्रमण बिल्कुल अलग और नया था, ना ईलाज मौजूद था, ना ही कोई औषधि और ना ही इसे पहचानने का मुकम्मल तरीका। उन दिनों सब कुछ एक प्रयोग की तरह था। लेकिन इन विषमताओं के बावजूद डाक्टर रौतेला ने इस चुनौती को गले लगाकर उसका स्वागत किया। सरकारी प्रोटोकॉल और आइसीएमआर की गाइडलाइंस के अनुसार अस्पताल मे तैयारियां और व्यवस्था शुरु की गयी। लेकिन अभी तैयारियां शुरु ही हुइ थी कि कोविड की लहर अपने चरम पर आ गयी। सीमित समय और सुविधाओं के बाद भी डा. रौतेला और उनके सहकर्मियों ने हर हजारों की संख्या मे बाढ की तरह आ रहे मरीजों का ना केवल अस्पताल मे दाखिल किया बल्कि उनका मुकम्मल ईलाज भी शुरू किया, कहते हैं जब कोई काम एक अच्छी सोच और निस्वार्थ की जाए तो ईश्वर भी साथ देता है। जिस तरह से जीटीबी अस्पताल के सभी स्वास्थ्य कर्मियों ने मरीजों के ईलाज के साथ उनकी सेवा की, यह उसी का प्रतिफल था कि कुछ ही दिनों मे इस अस्पताल मे एक अच्छा सिस्टम बन गया। मरीज भी ठीक होने लगे, यद्यपि इस दौरान कुछ मरीजों की जान भी गयी, लेकिन वह संख्या ठीक होने वाले मरीजों के मुकाबले काफी कम थी। यह एक ऐसा दौर था जब सड़कों पर सिर्फ एम्बुलेंस की आवाज सुनाई पड़ती थी, रात के सन्नाटे को एम्बुलेंस की सायरन की आवाज़ ही तोड़ती थी। टीवी, रेडियो और अखबार सिर्फ कोरोना महामारी की खबरों से भरे होते थे, एक तरफ जहां लोग अपने परिजनों से बिछड़ रहे थे तो वहीं लोग की उम्मीदें भी साथ छोड़ रही थी। लेकिन मरीजों का साथ अगर किसी ने पकड़े रखा तो वो थे डाक्टर आर एस रौतेला जैसे मानवता के सेवक, जो अपने सहयोगियों के साथ 18 घंटे से 20 घंटे तक अस्पताल मे अपनी सेवाएं देते थे।
गरीब या आर्थिक रुप से कमजोर मरीजों की सहायता भी करते रहे। डाक्टर रौतेला बताते हैं कि उनके इस काम मे कई स्वयंसेवी संस्थाओं और समाजसेवियों ने उनका साथ व सहयोग दिया। जहां डाक्टर रौतेला अपनी सेवाएं इस अस्पताल को दे रहे थे, तो वहीं इनके पुत्र और पुत्री जो इसी अस्पताल मे चिकित्सक थे, उन लोगों ने भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए मरीजों की सेवा की। इस दौरान कुछ दुश्वारियों का भी सामना करना पड़ा, सबसे बड़ी समस्या खुद उनके घर मे होती थी, डाक्टर आर एस रौतेला जहां अपने पुत्र, पुत्री के साथ अपना सारा समय अस्पताल मे बिताते थे तो वहीं उनकी पत्नी घर पर अकेली इंतजार करती थी, विभिन्न समाचार चैनलों और अखबारों की खबरों से वो सिहर उठती थी, लेकिन उन्होंने ने भी संयम से काम लिया घर रहकर भी अपने पति, अपनी संतानों का बखुबी साथ दिया।
जब डाक्टर रौतेला से उनका अनुभव सांझा करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार किया, लेकिन काफी कहने या कुरेदने का बाद उन्होंने अपने कुछ अनुभव को सांझा किया। उन्होंने बताया कि अस्पताल के सामने कई चुनौतियां था, सबसे पहले कोविड के मरीज, उसके बाद अन्य रोगों से जूझने वाले मरीज। चूंकि कोरोना के संक्रमण वाले क्षेत्र सामान्य मरीजों का ईलाज सम्भव नहीं था, तो डाक्टर रौतेला ने अपने समीप के अस्पताल मे अन्य उपचार की व्यवस्था की, जिसमे थैलिसीमिया, एचआईवी और टीबी के मरीज थे। यह डाक्टर रौतेला की दूरदृष्टि और सोच का ही परिणाम था कि थैलिसीमिया के मरीजों का भी नियमित ईलाज चलता रहा जिसमें मरीज नियमित अंतराल पर खून चड़ाने की जरूरत होती है। एचआईवी पीडित मरीजों को भी नियमित देखभाल और उपचार की जरूरत होती थी उसे भी पूरा करते रहै। तो वहीं दूसरी तरफ टीबी के मरीजों को जहां सरकार की योजना के तहत अस्पताल से ही दवाएं मिलती थी, कोरोना के भयावह संक्रमण के दौर मे भी अस्पताल के कर्मचारियों ने टीबी मरीजों को पूर्व की भांति नियमित रुप से दवाएं दी।
डाक्टर आर एस रौतेला के विषय मे उन्हीं के सहकर्मी कहतें है कि डाक्टर रौतेला शारिरिक रुप से अक्षम होते हुए भी अपना पूरा योगदान देते थे, चूंकि डाक्टर रौतेला एक दिव्यांग थे, लेकिन इस कमजोरी से भी उन्होंने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और बुलंद इरादे से पार पा लिया।
इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद डाक्टर आर एस रौतेला मरीजों की सेवा मे लगे रहे। जिस तरह से डा. रौतेला ने कोरोना संक्रमण मे अपना योगदान दिया उसे देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ ही दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री ने इनके काम की सराहना की। लेकिन क्या इनकी सेवाओं का फल मात्र सराहना है, जिस तरह तमाम सरकारी संस्थान, स्वयंसेवी संगठनों गैर योग्य लोगों को पुरस्कृत करते है या लाबिंग करके पुरस्कार दिलाते हैं, क्या इनकी नजरें डाक्टर आर एस रौतेला जैसे देवदूत पर नहीं पड़ती? यदि गौर किया जाए तो डाक्टर रौतेला जैसे कई और मानवता की सेवा करने वाले मिलेंगे। लेकिन ये लोग बिना किसी चाह के अपनी धुन मे लगे रहते हैं, लेकिन समाज के ठेकेदारों को भी इनके योगदान को देखना चाहिए....